क़लम काग़ज़ और जज़्बात
एक क़लम ही तो है
/
जिस पर मेरा ज़ोर चलता है
/
जब होतें हैं आँखों में आँसू मेरे
/
तब काग़ज़ ही रहता साथ मेरे
/
इन काग़ज़ों को भिगो देती हूँ
/
रुबाई से
/
क़लम भी साथ देती है
/
खारे पानी को निकालने में
/
भिगो देती हूँ उन सारे काग़ज़ों को
/
जज़्बातों से
/
फिर भी काग़ज़ का टुकड़ा कुछ नहीं बोलता
/
अगर यही इंसान का दिल होता तो
/
सदफ वो सिर्फ जज़्बातों का मज़ाक बनाता
/
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जिस पर मेरा ज़ोर चलता है
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जब होतें हैं आँखों में आँसू मेरे
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तब काग़ज़ ही रहता साथ मेरे
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इन काग़ज़ों को भिगो देती हूँ
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रुबाई से
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क़लम भी साथ देती है
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खारे पानी को निकालने में
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भिगो देती हूँ उन सारे काग़ज़ों को
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जज़्बातों से
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फिर भी काग़ज़ का टुकड़ा कुछ नहीं बोलता
/
अगर यही इंसान का दिल होता तो
/
सदफ वो सिर्फ जज़्बातों का मज़ाक बनाता
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Wow
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