क़लम काग़ज़ और जज़्बात

एक क़लम ही तो है
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जिस पर मेरा ज़ोर चलता है
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जब होतें हैं आँखों में आँसू मेरे
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तब काग़ज़ ही रहता साथ मेरे
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इन काग़ज़ों को भिगो देती हूँ
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 रुबाई से
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क़लम भी साथ देती है
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खारे पानी को निकालने में
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भिगो देती हूँ उन सारे काग़ज़ों को
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 जज़्बातों से
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फिर भी काग़ज़ का टुकड़ा कुछ नहीं बोलता
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अगर यही इंसान का दिल होता तो
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सदफ वो सिर्फ जज़्बातों का मज़ाक बनाता
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  @सदफ@

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