परिस्तिथियाँ
आज कुछ हलचल है मन में
बहुत ही बैचेनी है दिल में
मगर क्या करूँ इसे मनाने में
हालातों से मजबूर बेबस हूँ मैं
समय के गर्त में ऐसी गिरी हूँ मैं
परछाइयों के साये से डरी हूँ मैं
जिंदगी की घड़ी का कुछ पता नही
न जाने कब उल्टी चलने लगे ये
इसी गुत्थी को सुल्झाते -सुल्झाते मैं
ताने बाने को जोड़ते -जोड़ते मैं
न जाने कहाँ खो गयी हूँ कि
अपना वजूद ही पहचानने से डरती हूँ मैं
बहुत ही बैचेनी है दिल में
मगर क्या करूँ इसे मनाने में
हालातों से मजबूर बेबस हूँ मैं
समय के गर्त में ऐसी गिरी हूँ मैं
परछाइयों के साये से डरी हूँ मैं
जिंदगी की घड़ी का कुछ पता नही
न जाने कब उल्टी चलने लगे ये
इसी गुत्थी को सुल्झाते -सुल्झाते मैं
ताने बाने को जोड़ते -जोड़ते मैं
न जाने कहाँ खो गयी हूँ कि
अपना वजूद ही पहचानने से डरती हूँ मैं
///सदफ ///
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