यादें

कुछ भूली बिसरी यादें, शिद्द्त से याद आती हैं
न जाने वो शोखियाँ, कम्बख्त कहाँ खो गयी हैं
कोई तो लौटा दो, उन हसीं पलों के झरोखों को
              सच में...वो यादें बहुत याद आती हैं

उन मुस्मुसाती यादों से, मुझे दिल्लगी करनी है
एक नज़र ही सही,बस मुझे मुलाक़ात करनी है
वो शबनमी एहसास, मेरी रूह को करने तो दो
             सच में... वो यादें बहुत याद आती हैं

वो बातों की अठखेली का, मंजर याद आता है
हँसी के ठहाकों भरा, नज़ारा भी याद आता है
उन खुशनुमा पलों की, परछाई को छूने तो दो
             सच में... वो यादें बहुत याद आती हैं
                 ///सदफ ///


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