इल्ज़ाम

यूँ इस तरह बेवफाई का इल्ज़ाम न लगाओ
भरी महफिल में जज्बातों को सरेआम न कराओ
वरना इस टूटे दिल का फ़साना क्या यारों
बस इसे तन्हाई में अब और न रूलाओ

अब मेरी बेबसी का और इम्तेहान न लो
बहते वक्त के साये से मुझे और न डराओ
गुज़रे लम्हों का अक्स ही बाकी है यारों
बस उन यादों पर कोई इल्ज़ाम न लगाओ

यादों की फेहरिस्त पर पेबंद न लगाओ
बेरुखी यादें ही सही पर मुंह न घुमाओ
यही यादों का क़िस्सा जिंदगी है यारों
बस इन यादों पर कोई नश्तर न चुभाओ
           @सदफ@

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