ग़ज़ल ख़्वाब
एक दिन ख़्वाबों की दुनिया को कुछ यूँ सजाया हमने
कि ख्वाहिशों को बस लबों से सरेआम दिया कुचलने
गुफ़्तगू की साजिशों में हमें इस क़दर उलझाया उन्होंने
कि हसरतों पे चिलमन डालकर बेइंतेहा रुलाया हमें
फूटकर निकले जो दिल से वसवसों ने समझाया मुझे
कि वो उन ख़्वाबों का अक्स है जिसने कभी हंसाया तुझे
आज वो अंधेरे का मबूल जो दिया कभी जलाया उन्होंने
कि आँसूओं के सैलाब ने फिर से बाती बना जलाया उसे
सदफ ये ख़्वाबों का काफ़िला इस क़दर सुर्ख़ हुआ तुझसे
कि कहीं ये आगोशियाँ न टूट जाए बिन पूरा ख़्वाब हुए
/सदफ/
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