मिलन की सांझ

 ट्रेन की रफ़्तार ने तूफ़ान की तरह गति पकड़ ली है, आसमां को बादलों ने अपनी बाहें फैलाकर ढक लिया है, पेड़ो ने लहलाहना शुरू कर दिया है , तितलियों ने नाचना शुरू कर दिया है , भंवरों ने गुनगुनाना शुरू कर दिया है, चारों और फूलों ने अपनी सुगंधित खुशबू बिखेरना शुरू कर दी है।

दरअसल आज पूरे दो महीने बाद सलोनी अपनी प्रीत से मिलने जा रही है ।उससे मिलने की खुशी में सलोनी को अपना कोई खयाल नहीं है । कहाँ तो पूरा शहर लॉक डाउन के नियमों के पालन में व्यस्त है उधर सलोनी अपनी ही धुन में बिना कुछ सोचे समझे निकल पड़ी है प्रीत की झलक पाने को। 

इन दो महीनों में सलोनी की बेचैनी की गवाही उसका तकिया आसानी से बयाँ कर देगा। बिस्तर पर करवट बदलते रातों की निंदिया तो सलोनी की आंखों से ओझल हो चुकी थी ।अगर सोना भी चाहे तो उस पर प्रीत की यादें हावी हो जाती, बस फिर क्या? तकिये को गीला होने में कुछ ही सैकेंड्स लगते। ये सिलसिला दो महीने से यूहीं चल रहा था।आखिरकार सलोनी इस सिलसिले को आगे बढ़ाना नहीं चाहती थी।बस इसलिए आज ट्रेन में सवार हो गई....अपनी प्रीत से मिलने के लिये।

सलोनी दो वर्ष पहले ही तो मिली थी प्रीत से। एक दिन झमाझम बारिश हो रही थी । मौसम ने सुहावनी करवट ले रखी थी।प्रीत लाइब्रेरी पढ़ने जा रही थी।सलोनी को अपनी तरफ आता देख प्रीत ख़ुशदिली से उसका अभिवादन स्वीकार करती है और आग्रह भी करती है कि सलोनी भी उसके साथ लाइब्रेरी जाकर पढ़ाई करे। 

दोनों बतियाते हुए चल पड़ती हैं -लाइब्रेरी। सलोनी का चंचल मिजाज़ उसे उस शांत माहौल में बैठने नहीं दे रहा था। यकायक वो अपनी डायरी और पेन निकालती है और उस पर अपनी कल्पनाओं की लकीरें खींचने लगती है। कल्पनाओं में उड़ते उड़ते वह अपनी सृजनशीलता का परिचय देने लगती है।एक पेज पर कुछ पंक्तियाँ लिखकर प्रीत को देती है और कहती है कि आज का दिन हम दोनों को मुबारक हो क्योंकि ये हम दोनों की दोस्ती का दिन है।

देखते ही देखते दोनों एक दूसरे के दिल की हमसफर बन गयी।दोनों का यूनिवर्सिटी साथ जाना , साथ वापस आना,साथ खाना खाना ,साथ मे सोना, सब कुछ एक साथ। दोनों ही पीएच.डी. कर रहीं थीं, बस दोनों के शोध निर्देशक अलग अलग थे। गाइड अलग अलग होने से दोनों कुछ समय के लिए जुदा हो जाती थीं।लेकिन रूम एक ही होने के कारण शाम और रात एक साथ ही बीतती थी। 

वैसे तो दोनों के नेचर में ज़मीन और आसमां का फर्क था । अगर सलोनी को घूमना पसंद है तो प्रीत को अकेले रहना।सलोनी खर्चीली प्रवृत्ति की है तो प्रीत कंजूस या यूँ कहें कि सलोनी किसी  चीज़ के लिए अपना दिल नहीं मार सकती जबकि प्रीत अपना दिल मारना बख़ूबी जानती है। वह जल्दी अपनी बात किसी से नहीं कहती जबकि सलोनी के दिल में जो होता एकदम बेधड़क बोल देती है। बस इसी के चलते दोनों में कभी कभी अनबन हो जाती । दोनों के बीच यह अच्छी बात थी कि अगर एक नाराज़ हुआ तो दूसरा झट से उसे मना लेता था।आखिरकार दोनों को एक दूसरे के बिना चैन नही आता था।

प्रीत लंबी, ऊंची, चौड़ी व छरहरे बदन की है जबकि सलोनी  छोटी व बच्चों जैसी हरकतें करने वाली है। प्रीत उसके साथ बच्चे जैसा ही व्यवहार करती थी और सलोनी भी उसकी हर बात आंख बंद करके मानती थी। प्रीत रिश्तों को व्यवहारिक तौर पर निभाती है क्योंकि अभी तक उसने अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जी है और अब उसे सलोनी का उसकी जिंदगी में ज़्यादा दख़ल पसंद नहीं है। सलोनी  तो उसको अपने जीवन का अंग मानती है लेकिन प्रीत अपना अंग न मानकर दूसरा ही अंग मानती है। ऐसा नही कि सलोनी के लिये उसका प्यार कम है।बात इतनी सी है कि प्रीत के काम सर्वोपरि हैं। काम के समय प्रीत किसी का भी कोई ख़्याल नहीं करती है चाहे वो सलोनी ही क्यों न हो ?

इस बात से सलोनी हमेशा नाक व मुँह सुकेड़ा करती है। उसे लगता है कि प्रीत को उसकी कोई कद्र नहीं है। प्रीत के इसी काम ने दोनों के बीच दूरियां पैदा कर दी हैं। सलोनी के लिए हर छोटी से छोटी खुशी में भी प्रीत को शामिल करना होता है जबकि प्रीत का मानना होता कि वो तो उसके साथ हमेशा है।अगर आज वो उसकी खुशी में शामिल नही हो पाई तो क्या हुआ? सलोनी के साथ अगर कुछ अच्छा होता है तो प्रीत खुश तो होती है, लेकिन उसके जश्न में तभी शामिल होगी जब उसका कोई काम नहीं होगा। अब आपको ये जानकर भी आश्चर्य होगा कि काम के आगे उसे कोई नज़र नहीं आता....ना ही नींद...और ना ही भूख। एक बार तो उसे एक रिसर्च पेपर लिखना था, तो लगातार दो दिन जगती रही।

प्रीत की इस आदत ने दोनों के दरमियाँ फासले नापना शुरू कर दिए। जब से यूनिवर्सिटी बंद होने के कारण दोनों अपने अपने घर गयी हैं तो शुरू में तो कॉल पर एक दूसरे का हाल चाल लिया जाता था लेकिन आज हालत यह हो गई है कि अगर सलोनी उसे कॉल न करे तो कई कई दिन दोनों की बातचीत नहीं होती । कुछ दिनों तक तो प्रीत 5 से 7 मिनट के लिए कॉल करती रही, वो भी इसलिए कि हाँ मैंने तुम्हारी खैरियत पूछ ली। रोज़ रोज़ के एक ही सवाल से सलोनी को ऊब होने लगी।अब उसने भी प्रीत से उतना ही मतलब रखना शुरू कर दिया है जितना कि एक अजनबी दूसरे से रखता है।

रिश्तों की डोरी कुछ ऐसे टूटती जा रही है कि जिसे संभालना अब मुश्किल हो रहा है।अभी दोस्ती के धागे हैं तो लेकिन वो कच्चे होते जा रहे हैं। कहाँ तो प्रीत कहती थी कि सलोनी उसके लिए सच्चा मोती है और वो एक मांझे की तरह है। अगर किसी ने भी मोती को तोड़ने की कोशिश की तो वह मांझा बनकर उसकी डोर काट देगी।

आज सलोनी को यह सब बड़ी शिद्दत से याद आ रहा है ।आज वह इस रिश्ते की गुत्थी सुलझाना चाहती है। वह प्रीत से पूछना चाहती है कि जब रिश्ते निभा नहीं सकती तो बनाती क्यों हो? अपने इसी सवाल को लेकर आज सलोनी निकली है। इस ब्रह्माण्ड में यह सत्य है कि अगर आप किसी को शिद्दत से चाहते हो या उस पर अपना हक जताना चाहते हो तो ये सम्भव नहीं कि सामने वाले के प्यार में भी वही ताकत हो। अगर एक ज़्यादा चाहेगा तो दूजा उससे कम ही उसे चाहेगा या फिर उससे ज़्यादा। मतलब कभी प्यार तराज़ू में नहीं तौला जा सकता।अगर आप एक तरफ का प्यार तोलेंगें तो वो या तो ज़्यादा होगा या फिर कम। बराबर का कभी नहीं होगा।शायद इस बात को सलोनी समझना नहीं चाह रही या उसे ये मंज़ूर नहीं कि उसकी प्रीत का प्यार तौला जाए।

इसी नाप तौल का हिसाब चुकता करने आज वह प्रीत के घर जा रही है , वो भी बिना बुलावे के ....अपने पूरे हक़ के साथ ।

उसे ये देखना है कि उसकी दोस्ती की डोर कितनी मज़बूत है।उसके भौर का तारा अभी भी चमक रहा है या उसकी चमक फीकी हो गयी है । आज की सांझ मिलन की सांझ हो पाती है या रिश्ते कहीं दरक चुके हैं।

प्यारी सखी प्रीतो को समर्पित ....अगर वो इसे पढ़कर भावनाएं समझ पाए तो फिर दोस्ती का कोहिनूर अभी भी चमक रहा है।

@सदफ@




























































































Comments

Popular posts from this blog

लेखनी का मकसद

कोई अपना नहीं