रिश्तों की टूटती डोर

रिश्ते धीमी आंच पर दहकते कोएलों की तरह जल रहे थे

सर्द नाज़ुक मौसम की शबनमी बूंदों से लिपट रो रहे थे

क्या कहने ऐसे हसीन दर्दनाक रिश्तों की सौगातों को

जो दिलों को जोड़ने के बजाए उनकी नीलामी कर रहे थे


फलसफा इतना ही नहीं, ये मखमली बयान कर रहे थे

दरअसल बनावटी रिश्तों के मर्म को पहचानना सिखा रहे थे

क्या कहने ऐसे बेवफा रिश्तों की सुगबुगाहटों को

जो ठंडे पड़े रिश्तों को मीठी गर्माहट देने को सोच रहे थे







Comments

Popular posts from this blog

सफ़र

नानी माँ

लेखनी का मकसद