पी एच डी का दर्द कोई नहीं समझता

 सुबह से शाम हो गई लिखते लिखते 

लेकिन कुछ न लिख पाए 

हालत ये हो गई है हमारी ज़माने में

कि इसका दर्द हम किसी को कह नहीं पाते 













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