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ग़ज़ल ख़्वाब

एक दिन ख़्वाबों की दुनिया को कुछ यूँ सजाया हमने  कि ख्वाहिशों को बस लबों से सरेआम दिया कुचलने  गुफ़्तगू की साजिशों में हमें इस क़दर उलझाया उन्होंने  कि हसरतों पे चिलमन डालकर बेइंतेहा रुलाया हमें  फूटकर निकले जो दिल से वसवसों ने समझाया मुझे  कि वो उन ख़्वाबों का अक्स है जिसने कभी हंसाया तुझे  आज वो अंधेरे का मबूल जो दिया कभी जलाया उन्होंने  कि आँसूओं के सैलाब ने फिर से बाती बना जलाया उसे  सदफ ये ख़्वाबों का काफ़िला इस क़दर सुर्ख़ हुआ तुझसे  कि कहीं ये आगोशियाँ न टूट जाए बिन पूरा ख़्वाब हुए  /सदफ/

अस्तित्व की पहचान

जिंदगी के लिये हर पल लड़ना होता है अस्तित्व बोध के लिए झगड़ना होता है जितना पाया उस पर नाज़ तो होता है लेकिन हरदम ऊँचाइयों के लिए चढ़ना होता है खुद को मंजिल की बैसाखी बनाना होता है अपनी पहचान का जुगनू जलाना होता है भले ही लोगों को सूरत से पहचानना होता है लेकिन मुझे अपने काम से नाम कमाना  होता है तमन्नाओं की श्रंखला में हीरा जोड़ना होता है मेहनत के मोतियों को गाँठी में पिरोना होता है कहीं सपने टूट न जायें कच्चे धागों की तरह बस यही डर दिमाग से हटाना होता है कशमकश में उलझी जिंदगी को बुनना होता है परत दर परत खुलती जिंदगी को संवारना होता है ऐ सदफ इसी उधेड़बुन के ताने बाने को बुनते बुनते अपने अस्तित्व की तलाश को खोजना होता है ::::सदफ:::::

जज्बातों के एहसास

जज़्बात तो जज़्बात होते हैं बस उनके सौदे नहीं होते हैं           / भले ही उन पर तगड़ी सील लगानी पड़े लेकिन सरेआम उनको नीलाम नहीं करते           / जज़्बातों से जो चिलमन उठ गया तो समझो वफ़ा पे ऐतबार न रहा           / गर भरोसा है अपने जज़्बातों पर तुमको तो उनके सहारे जिंदगी की खुद ढाल बनो           / यही है सिर्फ़ जज़्बातों से वफ़ा-एह-ले वरना दगा तो हमारे एहसास भी दे देते हैं """""@सदफ@"""""

दुश्मनों की फौज

दुश्मनों का लम्बा हुजूम भी होगा उनके छिपे वारों का वार भी होगा ज़रा सफलता की सीढ़ी चढ़ना तो साहिब दोस्त भी छिपे लिबास में दुश्मन होगा जलना तो लोगों की फ़ितरत में होगा ऊपर से अंगारें बरसाना भी शौक होगा भीड़ से अलग चलने का हुनर हुआ जो साहिब तो परिवार में भी गिरगिटी दुश्मन होगा आरज़ू है अगर तो जुस्तजू का भी जुगनू होगा बस उसी की रोशनी में खुद को चमकाना होगा छूना है जो रंग बिरंगी आसमानी तारों को ए साहिब तो हर मुखौटाधारी दुश्मन को पहचानना होगा गर पहचानकर जो आवाज़ उठाने का हुनर होगा तो समझो शराफ़त का नकाब भी फिसलता होगा गर ख़ुद को आज़माइशो में साबित करना जो हुआ ऐ साहिब तो इन दोगली शख्सियतों का मुँह कुचलना होगा @"""सदफ"""@

जिंदगी की उड़ान जारी, फिर से अपने आगरा शहर में

प्यार की निशानी , शाहजहाँ की ताज नगरी में                 / लेखनी की रवानगी,नज़ीर की क़लम की नगरी में                / शायरों की बेतबाज़ी,ग़ालिब की गजलों की नगरी में                / तारीखों की गवाही,अकबर की फतेहपुर सीकरी में               / सुरों की सतरंगी , तानसेन के राग भैरवी की नगरी में               / मंजिलों की बैसाखी सदफ के सपनों की नगरी में               / शोहरत की अठखेली,  तमगों की सुंदर नगरी में               / जिंदगी की उड़ान जारी, फिर से अपने आगरा शहर में               /        @सदफ@

आगरा के नाम

नज़ीर के शहर से मेरा नाता कुछ यूँ रहा है शोहरत का वास्ता भी इसी शहर से रहा है बस इस शहर पर कुछ सितम हम ऐसे ढाते रहे अपना होते हुए भी हम इसे बेगाना समझते रहे और ये शहर मेरी बेवफ़ाई को भी बर्दाश्त करता रहा है इसलिये इल्ज़ाम हटाने को शहर ने फिर से पुकारा है वादा रहा इस बार कि बदले में हम भी तुझे वफ़ा ही देंगे ए आगरा शहर तेरा शुक्रिया मेरा दुबारा से स्वागत के लिये                   """"@सदफ@"""

कानपुर के नाम

कानपुर की वो यादें,आज शिद्द्त से याद आती हैं न जाने वो हसीं शोखियाँ, कम्बख्त कहाँ खो गयी हैं कोई तो लौटा दो, उन हसीं पलों के झरोखों को.....                       सच में...वो यादें बहुत याद आती हैं उन मुस्मुसाती यादों से, मुझे दिल्लगी करनी है एक नज़र ही सही,बस मुझे मुलाक़ात करनी है वो शबनमी एहसास, मेरी रूह को करने तो दो              सच में... वो यादें बहुत याद आती हैं वो बातों की अठखेली का, मंजर याद आता है नश्तर चुभोने का वो प्यार भरा दर्द याद आता है उन खुशनुमा पलों की, परछाई को छूने तो दो              सच में... वो यादें बहुत याद आती हैं वो चालाक कौवी कहना , आज बहुत याद आता है वो मोटो जी का झापड़ मारना,  भी याद आता है अपने दोनों अनमोल रत्नों से एक बार मिलने तो दो                  सच में... वो यादें बहुत याद आती हैं                        ...